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दुनिया के अजीबो गरीब मंदिर (Strange temples of the world)

दुनिया के अजीबो गरीब मंदिर (Strange temples of the world)

दुनिया के अजीबो गरीब मंदिर (Strange temples of the world)

 योगमाया मंदिर 


महरौली नई दिल्ली में स्थित यह योगमाया मंदिर कुतुब मीनार के पास में ही स्थित है। यह मंदिर हिंदू धर्म से जुड़े श्री कृष्ण के बहन के रूप में जन्मे योगमाया के मंदिर के लिए जाना जाता है। 


योगमाया मंदिर के निर्माण के बारे में बताया जाता है कि इसका निर्माण महाभारत काल से जुड़ा हुआ है, जो कि पांडवों द्वारा युद्ध की समाप्ति के उपरांत किया गया था। फिर पुनः 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ के समय में इस मंदिर का पुनः र्निर्माण भी करवाया गया था।


योगमाया मंदिर से जुड़ी एक पौराणिक कहानियों का जिक्र किया जाता है, जो की कहानी महाभारत से जुड़ी हुई है। इस योगमाया मंदिर को द्वापर युग का मंदिर माना जाता है। द्वापर युग में जिस समय श्री कृष्ण का जन्म हुआ था, उससे पहले ही मां दुर्गा योगमाया के रूप में जन्म ली थी।


योगमाया ने यशोदा के गर्भ से जन्म लिया और श्री कृष्ण ने देवकी के गर्भ से जन्म लिया। लेकिन कंस को मारने के लिए हुई आकाशवाणी को लेकर वासुदेव ने कृष्ण को यशोदा के पास एवं योगमाया को देवकी के पास लेटा दिया। 


तब पश्चात जब कंस को मालूम चला कि देवकी के गर्भ से एक बच्ची का जन्म हुआ है, तब उसने उस बच्ची को जमीन पर पटक कर मारने की कोशिश की, तभी योगमाया कंस के हाथ से निकाल कर आकाश में पहुंची और वहां पर अपने रूप में आकार कंस को बताई, कि तुम्हें मारने वाला इस पृथ्वी पर जन्म ले चुका है। यह मंदिर उसी योगमाया अवतार के लिए जाना जाता है।


Pashupatinath temple Nepal


विश्व धरोहर में शामिल है पशुपतिनाथ

पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू से तीन किलोमीटर उत्तर-पश्चिम देवपाटन गांव में बागमती नदी के तट पर स्थित है। 


यह मंदिर भगवान शिव के पशुपतिनाथ स्वरूप को समर्पित है। यूनेस्को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में शामिल भगवान पशुपतिनाथ का मंदिर नेपाल में शिव का सबसे भव्य और पवित्र मंदिर माना जाता है। 

यह मंदिर हिन्दू धर्म के आठ सबसे पवित्र स्थलों में से भी एक माना जाता है। 


भगवान शिव के पशुपति स्वरूप को समर्पित इस मंदिर में दर्शन के लिए प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु आते हैं, जिनमें सबसे अधिक भारतीय श्रद्धालु होते है। इस मंदिर में भारतीय पुजारियों की काफी संख्या है। 


सदियों से केदारनाथ और बदरीनाथ की तरह यहां परंपरा रही है कि मंदिर में चार पुजारी और एक मुख्य पुजारी दक्षिण भारत के ब्राह्मणों में से रखे जाते हैं। 


किंवदंतियों के अनुसार मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में कराया था, लेकिन पहले ऐतिहासिक रेकॉर्ड 13वीं शताब्दी के बताते हैं।


रंगनाथस्वामी मंदिर


श्री रंगनाथस्वामी मंदिर भगवान रंगनाथ को समर्पित एक हिंदू मंदिर है। भगवान रंगनाथ को विष्णु का ही अवतार माना जाता है। यह मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य के तिरुचिरापल्ली के श्रीरंगम में स्थित है।


दक्षिण भारत का यह सबसे शानदार वैष्णव मंदिर है, जो किंवदंती और इतिहास दोनों में समृद्ध है। यह मंदिर कावेरी नदी के द्वीप पर बना हुआ है। 


मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार को राजा गोपुरम का नाम दिया गया है, जो 13 प्रतिशत के क्षेत्रफल में बना हुआ है और 239.501 फीट ऊँचा है।


श्रीरंगम मंदिर को विश्व के सबसे विशाल हिंदू मंदिरों में भी शामिल किया गया है। मंदिर 156 एकर (6,31,000 मीटर वर्ग) में 4116 मीटर (10,710 फीट) की परिधि के साथ फैला हुआ है, जो इसे भारत का सबसे बड़ा मंदिर बनाता है।


मंदिर से जुड़े हुए पुरातात्विक शिलालेख हमें 10 वी शताब्दी में ही दिखाई देते है। मंदिर में दिखने वाले शिलालेख चोला, पंड्या, होयसला और विजयनगर साम्राज्य से संबंधित है।


तपोवन


तपोवन कहाँ है?

तपोवन, जोशीमठ तहसील में भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के चमोली जिले का एक गाँव है।


तपोवन क्यों प्रसिद्ध है?

तपोवन प्राकृतिक झरनों के लिए जाना जाता है जहां धरती से गर्म पानी निकलता है । कई लोग इस गर्म पानी को औषधीय मानते हैं और कई त्वचा रोगों को ठीक करते हैं।


तपोवन में कितने तपस्या की थी?

मान्यता है कि लक्ष्मण जी ने अपनी आखिरी तपस्या तपोवन में की थी जो कि टिहरी गढ़वाल में है। अगर आप कभी उत्तरकाशी गए होंगे तो आपने तपोवन के बारे में जरूर सुना होगा।


तपोवन का रास्ता गोमुख के ऊपर से होकर जाता है और धार्मिक पर्यटन के नाम पर ज़्यादा से ज़्यादा लोग वहां जाने लगे हैं


गौमुख से, तपोवन (4,460 मीटर की ऊंचाई पर) के लिए 5 किमी की यात्रा शुरू करें, जो इस क्षेत्र में बेहतरीन उच्च ऊंचाई वाले अल्पाइन घास के मैदानों में से एक है। ट्रेक आसपास की चोटियों के स्पष्ट दृश्यों के साथ एक खड़ी चढ़ाई है।


गोमुख


गोमुख कहाँ स्थित है

गौमुख गंगोत्री ग्लेशियर में भागीरथी नदी का स्रोत है, जो गंगा नदी के मुख्य धाराओं में से एक है। यह जगह उत्तरकाशी जिले में 13,200 फुट (4,023 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है।


गोमुख क्यों प्रसिद्ध है?

गौमुख उत्तराखंड राज्य में स्थित पूरे भारत में ट्रेकिंग के लिए प्रसिद्ध है, जो गंगा नदी का उद्गम स्थल है, लेकिन गौमुख में गंगा नदी भागीरथी नाम से जानी जाती हैं।


गोमुख की क्या विशेषता है?

गोमुख ही वह जगह है जहां से गंगा निकलती है और हजारों किलोमीटर में फैली धरती की प्यास बुझाती है। गोमुख के आसपास पत्थरों के बीच गुजरती छोटी-छोटी धाराएं बन जाती है। दरअसल गंगोत्री एक ग्लेशियर है और गोमुख इसी का एक हिस्‍सा है।


गोमुख के अंदर क्या है?

गौमुख ग्लेशियर लगभग तीन सौ वर्ग किलोमीटर के हिमनदी क्षेत्र वाली एक प्रणाली है। यह उत्तराखंड हिमालय की भागीरथी घाटी में स्थित है, और इसमें सात से अधिक ग्लेशियरों का एक समूह शामिल है।


गंगोत्री से गोमुख कैसे पहुंचे?

गोमुख राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 108 पर गंगोत्री से 17 किमी दूर स्थित है। बस यात्री राज्य परिवहन की बसें ले सकते हैं जो उत्तरकाशी और ऋषिकेश/देहरादून/हरिद्वार के बीच प्रतिदिन संचालित होती हैं।


गंगोत्री


गंगोत्री मंदिर भारत के राज्य उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले से 100 km की दुरी पर स्थित है। पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार धरती पर मां गंगा का जिस स्‍थान पर अवतरण हुई। उसे “गंगोत्री तीर्थ” के नाम से जाना जाता है।


गंगोत्री उत्तराखंड राज्य में स्थित गंगा नदी के उद्गम के रूप में माना जाता है।

यह चार धाम यात्रा का दूसरा पवित्र पड़ाव है , जो कि यमुनोत्री धाम के बाद आता है।


यह मंदिर 3100 मीटर की ऊँचाई पर ग्रेटर हिमालय रेंज पर स्थित है। यह स्थान गंगा नदी का उद्गम स्थल है। गंगोत्री मंदिर भारत का सबसे प्रमुख मंदिर है।


गंगोत्री में गंगा का उद्गम स्रोत यहाँ से लगभग 24 किलोमीटर दूर गंगोत्री ग्लेशियर में 4,225 मीटर की ऊँचाई पर होने का अनुमान है।


गंगा का मन्दिर तथा सूर्य, विष्णु और ब्रह्मकुण्ड आदि पवित्र स्थल यहीं पर हैं।



यमुनोत्री मंदिर


हिमालय की पर्वत श्रंख्लायो में बसा ”यमुनोत्री धाम” हिन्दुओ के चार धामों में से एक है।


यमुनोत्री मंदिर गढ़वाल हिमालय के पश्चिम में समुद्र तल से 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर चार धाम यात्रा का पहला धाम अर्थात यात्रा की शुरूआत इस स्थान से होती है तथा यह चार धाम यात्रा का यह पहला पड़ाव है।


यमुनोत्री धाम का इतिहास यानी मंदिर का निर्माण  टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रतापशाह ने  सन 1919 में देवी यमुना को समर्पित करते हुए बनवाया था।


यमुनोत्री मंदिर भुकम्प से एक बार पूरी तरह से विध्वंस हो चुका है।

और इस मंदिर का पुनः निर्माण  जयपुर की “महारानी गुलेरिया” के द्वारा 19वीं सदी में करवाया गया था।


यमुनोत्री का वास्तविक स्रोत जमी हुयी बर्फ की एक झील और हिमनंद (चंपासर ग्लेशियर) है।

जो समुन्द्र तल से 4421 मीटर की ऊँचाई पर कालिंद पर्वत पर स्थित है।



केदारनाथ मंदिर


केदारनाथ मंदिर हिन्दुओं के प्रमुख मंदिरों में से एक है। यह मंदिर 12 ज्योतिलिंगों में से एक है तथा चार धाम और पंच केदार में भी इस मंदिर का नाम सम्मिलित है।


यहाँ स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है। केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिल में स्थित है तथा उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में है। 


यहाँ की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मन्दिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्य ही दर्शन के लिए खुलता है।


यह मन्दिर एक छह फीट ऊँचे चैकोर चबूतरे पर बना हुआ है। मन्दिर में मुख्य भाग मण्डप और गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा पथ है। बाहर प्रांगण में नन्दी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। 


मन्दिर का निर्माण किसने कराया, इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डव वंश के जनमेजय और इसका जीर्णोद्धार आदि गुरु शंकराचार्य ने किया था।


बद्रीनाथ मंदिर


बद्रीनाथ या बद्रीनारायण मंदिर एक हिन्दू मंदिर है यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। ये मंदिर भारत में उत्तराखंड में बद्रीनाथ शहर में स्थित है।

बद्रीनाथ मंदिर, चारधाम और छोटा चारधाम तीर्थ स्थलों में से एक है।


ऋषिकेश से यह 214 किलोमीटर की दुरी पर उत्तर दिशा में स्थित है। बद्रीनाथ मंदिर शहर में मुख्य आकर्षण है। प्राचीन शैली में बना भगवान विष्णु का यह मंदिर बेहद विशाल है। इसकी ऊँचाई करीब 15 मीटर है।


पौराणिक कथा के अनुसार , भगवान शंकर ने बद्रीनारायण की छवि एक काले पत्थर पर शालिग्राम के पत्थर के ऊपर अलकनंदा नदी में खोजी थी | वह मूल रूप से तप्त कुंड हॉट स्प्रिंग्स के पास एक गुफा में बना हुआ था।


यह मंदिर तीन भागों में विभाजित है, गर्भगृह, दर्शनमण्डप और सभामण्डप। बद्रीनाथ जी के मंदिर के अन्दर 15 मुर्तिया स्थापित है। साथ ही साथ मंदिर के अन्दर भगवान विष्णु की एक मीटर ऊँची काले पत्थर की प्रतिमा है।


इस मंदिर को “धरती का वैकुण्ठ” भी कहा जाता है। बद्रीनाथ मंदिर में वनतुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

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