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मध्यकालीन भारत का इतिहास - सूफी आंदोलन (Sufi Movement)

मध्यकालीन भारत का इतिहास - सूफी आंदोलन (Sufi Movement)

सूफी आंदोलन


“सूफी” शब्द की उत्पत्ति अरबी शब्द “सफा” से हुई है जिसके दो अर्थ हैं-ऐसे व्यक्ति जो ऊनी वस्त्र पहनते हैं, शुद्धता और पवित्रता।


इस मध्य काल के दौरान दो परस्पर विरोधी आस्थाओं एवं विश्वासों के ख़िलाफ़ सुधार अति आवश्यक हो गया था , जिसके द्वारा हिन्दू धर्म के कर्मकाण्ड एवं इस्लाम धर्म में कट्टर पंथियों के प्रभाव को कम किया जा सके। इन आन्दोलनों ने व्यापक आध्यात्मिकता एवं अद्वैतवाद पर बल दिया, साथ ही निरर्थक कर्मकाण्ड, आडम्बर एवं कट्टरपंथ के स्थान पर प्रेम, उदारतावाद एवं गहन भक्ति को अपना आदर्श बनाया । सूफीवाद के सिद्धांत “ईश्वर की प्राप्ति” पर आधारित है,


इस मत के लोगों के विचार और प्रथाएं हिंदू धर्म, ईसाई धर्म, बौद्ध धर्म और पारसी धर्म का मिलाजुला रूप था|इस मत का उद्देश्य आध्यात्मिक आत्म विकास के माध्यम से मानवता की सेवा करना था| इन्होनें ईश्वर के प्रति विश्वास और समर्पण के लिए कट्टरपंथियों के प्रचार का विरोध किया। ये लोग हिंदू-मुस्लिम एकता और सांस्कृतिक मेलजोल के इच्छुक थे।


इस मत के लोगों ने भौतिकवादी जीवन का विरोध किया लेकिन वे पूर्ण त्याग के पक्ष में नहीं थे|यह मत कई सिलसिलों में विभक्त था।


सूफियों के सिलसिले दो भागों में विभाजित थे, “बा-शरा” जो इस्लामी सिद्धांतों के समर्थक थे और “बे-शरा” जो इस्लामी सिद्धांतों से बंधे नहीं थे।


सूफी सम्प्रदाय के निम्न प्रमुख संत इस प्रकार है -


ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती - भारत में चिश्ती सम्प्रदाय के संस्थापक ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती थे इनका जन्म र्इरान के सिस्तान प्रदेश में हुआ था। बचपन में उन्होंने सन्यास ग्रहण कर लिया वे ख्वाजा उस्मान हसन के शिष्य बन गये और वे अपने गुरू के निर्देश में 1190 को भारत आ गये। वे अद्वैतवाद एवं एकेश्वरवाद की शिक्षा देते हुए मानव सेवा ही र्ईश्वर की सच्ची भक्ति है। हिन्दु के प्रति उदार थे।


निजामुदुदीन औलियों - निजामुदुदीन औलियां का जन्म बदॉयू में 1236 में हुआ था । 20 वर्ष की आया में वे शेख फरीद के शिष्य बन गये । उन्होंने 1265 में चिश्ती सम्प्रदाय का प्रचार प्रारंभ कर दिया था । वे सभी को र्इश्वर प्रेम के लए प्रेरित करते थे । जो लोग उनके यहां पहुंचते थे उन्हें वे संशारीक बन्धनों से मुक्ति दिलाने में सहायता करते थे ।


अमीर खुसरो - अमीर खुसरों का जन्म 1253 में एटा जिले के पटियाली नामक स्थान में हुआ था । वे एक महान सूफी संत थे । वे 12 वर्ष में ही कविता कहने लगे थे । उन्होंने अपने प्रयास से ‘‘तुगलक नामा’’ की रचना की वे महान साहित्यकार थे । वे संगीत के विशेषज्ञ थे । उन्होंने संगीत के अनेक प्रणालियों की रचना की वे संगीत के माध्यम से हिन्दू मुसलमानों में एकता स्थापित किया ।


इस प्रकार सूफी मत के भारत में अनके सम्पद्राय थे ।


1. चिश्ती सम्प्रदाय,


2. सुहरावादियॉं सम्प्रदाय,


3. कादरिया सम्प्रदाय,


4. नक्शबदियॉं सम्प्रदाय,


5. अन्य सम्प्रदाय (शत्तारी सम्प्रदाय) आदि ।


सूफी मत के सिद्धांत -


एकेश्वरवादी - सूफी मतावलम्बियों का विश्वास था कि र्ईश्वर एक है आरै वे अहदैतवाद से प्रभावित थे उनके अनुसार अल्लाह और बन्दे में कोई अन्तर नहीं है । बन्दे के माध्यम से ही खुदा तक पहुंचा जा सकता है।


भौतिक जीवन का त्याग - वे भौतिक जीवन का त्याग करके र्ईश्वर मे लीन हो जाने का उपदेश देते थे ।


शान्ति व अहिंसा में विश्वास - वे शान्ति व अहिसां में हमेशा विश्वास रखते थे ।


सहिष्णुता - सूफी धर्म के लोग उदार होते थे वे सभी धर्म के लोगों को समान समझते थे ।


प्रेम - उनके अनुसार पे्रम से ही र्ईश्वर प्राप्त हो सकते हैं। भक्ति में डूबकर ही परमात्मा को प्राप्त करता है।


इस्लाम का प्रचार - वे उपदेश के माध्यम से इस्लाम का प्रचार करना चाहते थे।


प्रेमिका के रूप मे कल्पना - सूफी संत जीव को प्रेमी व र्ईश्वर को प्रेमिका के रूप में देखते थे ।


शैतान बाध - उनके अनुसार र्ईश्वर की प्राप्ती में शैतान सबसे बाधक होते हैं।


हृदय की शुद्धता पर जोर - सूफी संत, दान, तीर्थयात्रा, उपवास को आवश्यक मानते थे।


गुरू एव शिष्य का महत्व - पीर (गुरू) मुरीद शिष्य के समान होते थे।


बाह्य्य आडम्बर का विरोध - सूफी सतं बाह्य आडम्बर का विरोध व पवित्र जीवन पर विश्वास करते थे


सिलसिलो से आबद्ध - सूफी सतं अपने वर्ग व सिलसिलो से सबंध रखते थे।


सूफी मत का प्रभाव


सूफी मत से भारत में हिन्दू मुस्लिम एकता स्थापित हो गयी। शासक एवं शासित वर्ग के प्रति जन कल्याण के कार्यों की प्रेरणा दी गयी। संतों ने मुस्लिम समाज को आध्यात्मिक एवं नैतिक रूप से संगठित किया गया।



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