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कोहिनूर हीरा का इतिहास Kohinoor diamond history in hindi

 कोहिनूर हीरा का इतिहास Kohinoor diamond history in hindi

कोहिनूर हीरा का इतिहास Kohinoor diamond history in hindi



हीरा एक प्रकार का रत्न है। विभिन्न नगों एवं रत्नों में सबसे अद्भुत रत्न है हीरा। राजा – महाराजाओं को भी हीरा अधिक प्रिय रहता था। सभी प्रकार के हीरों में “कोहिनूर” सबसे प्रसिद्ध, पुराना एवं महंगा हीरा है। यह जगमगाता हीरा अत्यंत ही बेशकीमती है। कोहिनूर का अर्थ “प्रकाश का पर्वत” या “प्रकाश की श्रंखला” होता है। इसकी शुरुआत आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले की कोल्लूर खदान से माना जाता है, परंतु फिर भी कोहिनूर को कई देश अपना होने का दावा करते हैं। हाल ही में कोहिनूर हीरा उसके असली जगह को ले कर सभी की चर्चा का विषय बना हुआ है।


कोहिनूर हीरा का इतिहास Kohinoor diamond history in hindi

आइये जाने कोहिनूर के इतिहास एवं उससे जुड़े रोचक तथ्यों के बारे में –


क्रमांककोहिनूर से जुड़े तथ्य


1. कोहिनूर का इतिहास

2. कोहिनूर हीरा कहाँ है?

3. कोहिनूर हीरा की कीमत

4. ब्रिटिश इंडिया कंपनी द्वारा कोहिनूर को रखना

5. कोहिनूर को कटवाना

6. महारानी विक्टोरिया की वसीयत


कोहिनूर का इतिहास (Kohinoor diamond history)


हीरे, जवाहरात, मोती, विभिन्न नग आदि में कोहिनूर हीरे का इतिहास बहुत ही पुराना है। इसका इतिहास लगभग 5000 वर्ष पुराना है। कोहिनूर कई देश का सफर करते हुए कई राजा महाराजाओं के हाथों से होते हुए अंततः वर्तमान में लंदन के टावर में सुरक्षित रखा गया है।


हीरे का इतिहास बहुत पुराना है। लगभग 5000 वर्ष पहले संस्कृत भाषा में सबसे पहले हीरे का उल्लेख किया गया। इसे “स्यामंतक” के नाम से जाना गया। यहाँ गौर करने बात यह है कि स्यामंतक को कोहिनूर से अलग माना जाता था। सबसे पहले 13वीं शताब्दी में सन 1304 में यह मालवा के राजा की निगरानी में सबसे प्राचीनतम हीरा था।


फिर 1339 में इस हीरे को समरकन्द के नगर में लगभग 300 वर्ष तक रखा गया। इस समय कुछ वर्षों तक हिन्दी साहित्य में हीरे को लेकर एक बहुत ही रोचक और अंधविश्वास से भरा हुआ कथन प्रचलित था। इसके अनुसार जो भी पुरुष इस हीरे को पहनेगा उसे श्राप लगेगा एवं वह कई दोषों से घिर जाएगा। इस श्राप के अनुसार हीरे को पहनने वाले व्यक्ति को सभी प्रकार की बदकिस्मती के लिए जाना जाएगा। इसे केवल कोई औरत या भगवान ही पहन सकते हैं, जो इसके सभी दोषों से दूर रह सकेंगे।


कोहिनूर कई मुग़ल शासक के अधीन रहा। 14वीं शताब्दी में दिल्ली के शासक, अलाउद्दीन खिलजी की पहुँच में यह हीरा रहा।


इसके बाद 1526 में मुग़ल शासक बाबर ने अपने लेख “बाबरनामा” में हीरे का उल्लेख करते हुए बताया, कि उन्हें यह हीरा सुल्तान इब्राहीम लोधी ने भेंट किया। उन्होने इसे “बाबर का हीरा” बताया।


बाबर के वंशज, औरंगजेब तथा हुमायूँ ने राज्य के इस अमूल्य हीरे की सौगात की सुरक्षा करते हुए इसे अपने वंशज महमद (औरंगजेब का पोता) को सौंपा। औरंगजेब इसे लाहोर की बादशाही मस्जिद में ले आया। सुल्तान महमद बहुत ही निडर एवं कुशल शासक था। उसने कई राज्यों को अपने अधीन कर लिए थे।


इसके बाद 1739 में परसिया के राजा नादिर शाह भारत आए। वे सुल्तान महमद के राज्य पर शासन करना चाहते थे। आखिरकार उन्होने सुल्तान महमद को हरा दिया और सुल्तान तथा उनके राज्य की धरोहरों को उनके अधीन कर लिया। तब नादिर शाह ने ही राज्य के बेशकीमती हीरे को “कोहिनूर” का नाम दिया। इस हीरे को उन्होने कई सालों तक परसिया में अपनी कैद में रखा।


कोहिनूर को देखने के लिए नादिर शाह लंबे समय तक जीवित नहीं रह सके। 1747 में राजनीतिक लड़ाई के चलते नादिर शाह की हत्या कर दी गयी और इस बेशकीमती कोहिनूर को जनरल अहमद शाह दुर्रानी ने अपने कब्जे में ले लिया।


फिर अहमद शाह दुर्रानी के वंशज शाह शुजा दुर्रानी कोहिनूर को 1813 में वापस भारत ले कर आए। इसे उन्होने अपने हाथ के कड़े में जड़वा कर कई दिनों तक पहना रखा। फिर आखिर में शुजा दुर्रानी ने कोहिनूर को सिक्ख समुदाय के संस्थापक राजा रंजीत सिंह को सौंप दिया। इस बेशकीमती तोहफे के बदले में राजा रंजीत सिंह ने शाह शुजा दुर्रानी को अफ़ग़ानिस्तान से लड़ने एवं राजगद्दी वापस लाने में मदद की।


महाराज रंजीत सिंह के एक प्रिय घोड़े का नाम भी कोहिनूर था। राजा रंजीत सिंह ने अपनी वसीयत में कोहिनूर हीरे को उनकी मृत्यु के बाद जगन्नाथपूरी (उड़ीसा, भारत) के मंदिर में देने की बात कही, परंतु ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) ने उनकी वसीयत नहीं मानी।


29 मार्च 1849 को द्वितीय एंग्लो – सिक्ख युद्ध की संपति पर ब्रिटीश फोर्स ने राजा रंजीत सिंह को हरा दिया था और राजा रंजीत सिंह की सभी संपत्ति तथा राज्य पर कब्जा कर लिया। ब्रिटिश सरकार ने लाहोर की संधि लागू करते हुए कोहिनूर को ब्रिटिश (इंग्लैंड) की महारानी विक्टोरिया को सौंपने की बात कही।


कोहिनूर हीरा कहाँ है?


कोहिनूर कई देश का सफर करते हुए कई राजा महाराजाओं के हाथों से होते हुए अंततः वर्तमान में लंदन के टावर में सुरक्षित रखा गया है।


कोहिनूर हीरा की कीमत (Kohinoor diamond price)


बाबर ने ही हीरे का मूल्य बताते हुए कहा कि यह सबसे बेशकीमती एवं महंगा रत्न है, जिसकी कीमत पूरी दुनिया की एक दिन की आय के आधे मूल्य के लगभग है।


ब्रिटिश इंडिया कंपनी द्वारा कोहिनूर को रखना


कोहिनूर हीरा भारत में राजा रंजीत सिंह की निगरानी में कई दिनों तक सुरक्षित रहा। परंतु 1849 में ब्रिटिश फोर्स द्वारा पंजाब जीतने पर सिक्ख शासक रंजीत सिंह की सारी संपत्ति को ब्रिटिश सरकार ने अपने कब्जे में कर लिया। इसके बाद बेशकीमती कोहिनूर को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके खजाने में रख लिया तथा बाकी सिक्ख शासक की संपत्ति को लड़ाई के मुआवजे के तौर पर रख लिया गया।


फिर इस कोहिनूर को जहाजी यात्रा से ब्रिटेन लाया गया। ऐसा माना जाता है कि कोहिनूर को ले जाते वक़्त इसकी देख रेख एवं सुरक्षा करने वाले के हाथों यह बेशकीमती हीरा घूम गया, परंतु कुछ ही दिनों बाद उसके नौकर द्वारा कोहिनूर लौटाए जाने का वाक्या प्रचलित है। अंततः जुलाई 1850 में इस बेशकीमती, जगमगाते हुए हीरे को इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया के अधीन सौंप दिया गया।


कोहिनूर को कटवाना (Kohinoor diamond Facts)


महारानी विक्टोरिया के अधीन इस कोहिनूर को क्रिस्टल पैलेस (Crystal Palace) में प्रदर्शिनी के लिए रखा गया। इस समय इसका वजन 186 केरेट था। लेकिन यह प्रकाश का पर्वत उस समय उतना प्रभावी तथा जगमगाता हुआ नहीं दिखा। लोगों को यह देख कर काफी निराशा हुई। खासकर महारानी विक्टोरिया के पति प्रिंस अल्बर्ट (Prince Albert) हीरे की चमक देख कर अधिक निराश हुए। इसलिए महारानी ने इसे फिर से नया स्वरूप देने का निश्चय किया।


1852 में इसे डच के जौहरी मिस्टर केंटर (Mr. Cantor) को दिया गया, जिसने इसे काट कर 105.6 केरेट का कर दिया। इसे काट कर ओवल शेप में 3.6cm x 3.2cm x 1.3cm की साइज़ का बनाया गया। इसके पहले इसे कभी नहीं काटा गया।


महारानी विक्टोरिया की वसीयत


महारानी विक्टोरिया इसे किसी सुअवसर पर या किसी खास मौके पर ही पहनती थी। उन्होने अपनी वसीयत में कोहिनूर के उत्तराधिकारी के बारे में लिखा है, कि “कोहिनूर को केवल महारानियों द्वारा ही पहना जाना चाहिए”। “अगर किसी समय कोई पुरुष राज्य का शासक बनता है तो, उसकी पत्नी को कोहिनूर पहनने का अधिकार होगा”।


महारानी विक्टोरिया की मृत्यु के बाद कोहिनूर को महारानी के ताज में जड़ दिया गया। यह ताज के ब्रिटेन की महारानियों द्वारा पहना जाता है। इसका वजन लगभग 106 केरेट है। कोहिनूर इंग्लैंड के राजसी परिवार में महारानी के ताज में लगभग 2000 हीरों के साथ जड़ा गया है।


इस ताज को लंदन के टावर में रखा गया है। इसे देखने कई लोग दूर-दूर से आते हैं। यह राजसी परिवार की अमूल्य धरोहर है।

इसे महारानी विक्टोरिया के बाद महारानी एलेक्सजेंडर (एडवर्ड VII की पत्नी), उसके बाद महारानी मेरी तथा एलीज़ाबेथ द्वारा पहना गया।


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