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रेल से जुड़े गजब के तथ्य | Amazing facts related to railways

 रेल से जुड़े गजब के तथ्य | Amazing facts related to railways

रेल से जुड़े गजब के तथ्य | Amazing facts related to railways

रेल की पटरियों के बीच जगह क्यों छोड़ी जाती है?


ट्रेन की पटरी को जोड़ते समय बीच में थोड़ी सी जगह छोड़ दी जाती है। क्या आप जानते हैं कि दो पटरियों के ज्वाइंट के पास खाली जगह या गैप को क्यों छोड़ा जाता है?


आपने ध्यान दिया होगा कि जहां पर रेल की पटरी का जोड़ होता है उस रेलवे ट्रैक के ज्वाइंट के पास एक थोड़ा सा गैप होता है। इसे देखकर कई लोगों के मन में यह बात आती है कि गैप की वजह से ट्रैक से ट्रेन गुजरते समय दुर्घटनाग्रस्त ना हो जाए।


लेकिन इस गैप से ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त नहीं होती बल्कि दुर्घटना से बचने के लिए रेल की पटरी को जोड़ते समय इसमें गैप छोड़ा जाता है।


रेल पटरी के ज्वाइंट के पास गैप की वैज्ञानिक वजह है। दरअसल, रेल की पटरी लोहे से बनती है और लोहा सर्दी के मौसम में सिकुड़ना है और गर्मियों के दिनों में फैलता है।


इसी वजह से दो परियों के ज्वाइंट के बीच थोड़ा सा गैप छोड़ दिया जाता है। अगर रेल की पटरियों को जोड़ते समय गैप नहीं छोड़ा जाएगा तो फैलाव की वजह से पटरी कहीं ना कहीं टेढ़ी हो सकती है।


रेल की पटरी पर जंग क्यों नहीं लगता है?


हम सभी ने कभी ना कभी ट्रेन में सफर तो किया ही होगा लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हमें हमारी मंजिल तक पहुंचाने वाली लोहे की पटरियों पर कभी जंग क्यों नहीं लगती और इसके पीछे वजह क्या है?


वैसे तो हमारे घर में भी कई चीजें लोहे की होती हैं और रेल की पटरी भी लोहे की होती है लेकिन इन दोनों में ऐसा क्या फर्क है कि घर के लोहे में जंग लग जाती है और रेल की पटरी पर कभी जंग नहीं लगती।


कई लोगों से अगर यह सवाल पूछा जाए तो उनमें से कुछ लोगों का जवाब होता है कि ट्रैक पर पहियों के घर्षण बल के कारण जंग नहीं लगती है, लेकिन ऐसा नहीं है।


रेल की पटरी बनाने के लिए एक खास किस्म की स्टील का उपयोग किया जाता है स्टील और मेंगलॉय को मिला कर ट्रेन की पटरियों को तैयार किया जाता है। 


स्टील और मेंगलॉय (Mangalloy) के इस मिश्रण को मैंगनीज स्टील (Manganese Steel) कहा जाता है। इस वजह से ऑक्सीकरण नहीं होता है और कई सालों तक इसमें जंग नहीं लगती है।



रेल की पटरी पर पत्थर क्यों होते हैं?


ट्रेन में सफर करते वक्त जब आप आस-पास के नजारे देखते हैं तो क्या आपकी नजर कभी पटरियों पर गई है? जरूर गई होगी, तो क्या आपने कभी सोचा है ये पटरियों के बीच में इतने बड़े-बड़े नुकीले पत्थर क्यों लगाए जाते हैं।


आपने रेलवे ट्रैक पर पटरियों के बीच में एक पट्टी देखी होगी जिसे स्लीपर्स भी कहते हैं। असल में इन स्लीपर्स का काम होता है कि पटरियों पर जोर ना पड़े और ये ट्रेन के वजन को व्यवस्थित कर सकें। 


इसके अलावा इसके आस-पास नुकीले पत्थरों को डाला जाता है उसके पीछे 2 कारण हैं- एक तो ट्रेन जब तेज गति से चलती है तो ऐसे में ये नुकीले पत्थर एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। जिससे ट्रेन का बैलेंस बना रहता है।


ट्रेन जब ट्रैक से गुजरती है तो उस समय काफ़ी तेज़ कंपन और काफी शोर होता है। ऐसे में ट्रैक बैलेस्ट उस शोर को कम करके ट्रैक को बैलेंस रखता है।


असल में रेलवे ट्रैक की पटरियों को तीन लेवल में लगाया जाता है। सबसे पहली मिट्टी इस उसके बाद कंक्रीट और पत्थर जिसकी वजह से ट्रैक पर पेड़ पोधे उग नहीं पाते हैं।

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