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Hariyali Teej : हरियाली तीज कब है? इसका महत्व, पूजा विधि व व्रत कथा और यह क्यों मनाया जाता है?

 Hariyali Teej : हरियाली तीज कब है? इसका महत्व, पूजा विधि व व्रत कथा और यह क्यों मनाया जाता है?

हरियाली तीज

हरियाली तीज का परिचय 


हरियाली तीज के दिन सभी महिलाएं व्रत रखती हैं और माता पार्वती के साथ गणेश जी और भगवान शिव की पूजा अर्चना करती हैं, इस व्रत को रहने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति भी होती है।


हरियाली तीज भारत के एक प्रमुख त्योहारों में से एक है, यह हर साल सावन मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। हरियाली तीज को श्रावणी तीज या कुछ जगह पर इसे तिज्जो के नाम से भी जाना जाता हैं।


यह व्रत देवों के देव महादेव और माता पार्वती के मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। सभी सुहागिन स्त्रीयो के लिए ये व्रत अत्यंत पावन और फलदायी माना जाता है इस दिन सुहागिन औरतें अपने पति की लंबी उम्र का आशीर्वाद मांगती है।


इस वर्ष हरियाली तीज कब मनाई जाएगी


हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार सावन महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि की शुरुआत 18 अगस्त को रात 08 बजकर 01 मिनट पर होगी।

वहीं इसका समापन अगले दिन 19 अगस्त को रात 10 बजकर 19 मिनट पर होगा। इसलिए उदया तिथि के अनुसार हरियाली तीज 19 अगस्त को मनाई जाएगी।


हरियाली तीज का महत्व


पौराणिक कथा के अनुसार सर्वप्रथम माता पार्वती ने अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने के लिए यह व्रत शंकर भगवान के लिए रखा था। 


सौभाग्यवती महिलाएं अपने पति की लम्बी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए यह व्रत करती है। वहीं अविवाहित युवतियां भी आज के दिन अच्छे वर की कामना के लिए यह व्रत रखती है। 

इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार के साथ साथ हाथों में मेहंदी भी लगाती हैं। इस दिन चारों तरफ हरियाली रहती है जिसकी वजह से इसे हरियाली तीज कहते हैं। 


हरियाली तीज की पूजा विधि


हरियाली तीज का व्रत रखने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए और साफ- सुथरे कपड़े पहनकर भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान करना चाहिए।


इसके बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इस दिन बालू या मिट्टी के भगवान शंकर व माता पार्वती की मूर्ति बनाकर पूजा की जाती है और चौकी पर प्रतिमा स्थापित करने के बाद माता को श्रृंगार का सामान अर्पित करना चाहिए।


भगवान शिव और माता पार्वती का आवाह्न करना चाहिए।  माता-पार्वती, शिव जी और उनके साथ गणेश जी की पूजा भी करनी चाहिए। शिव जी को वस्त्र अर्पित करने चाहिए। इस दिन हरियाली तीज की कथा सुनना भी शुभ माना जाता है।

हमने आगे कथा के बारे में भी बताया है उसको भी अवश्य पढ़ें।


हरतालिका तीज व्रत के नियम


हरियाली तीज के कुछ नियम निम्नलिखित हैं-

◆ हरतालिका तीज व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है। व्रत के बाद अगले दिन जल ग्रहण करने का विधान है।

◆ हरतालिका तीज व्रत करने पर इसे छोड़ा नहीं जाता है। प्रत्येक वर्ष इस व्रत को विधि-विधान से किया जाता है।

◆ हरतालिका तीज व्रत के दिन रात्रि जागरण किया जाता है और रात में भजन-कीर्तन भी कर सकते हैं।

◆  हर तालिका तीज व्रत कुंवारी कन्या, सौभाग्यवती स्त्रियां करती हैं और शास्त्रों में विधवा महिलाओं को भी यह व्रत रखने की आज्ञा दी गई है।


हरियाली तीज व्रत कथा


ये तो आप सभी जानते हैं कि हरियाली तीज उत्सव को भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।


पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए बहुत ही कठोर तप किया था। इस कड़ी तपस्या से माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में भी प्राप्त किया था।


इस कथा के अनुसार माता गौरी ने पार्वती के रूप में पर्वतराज हिमालय के घर पुनर्जन्म लिया था। माता पार्वती बचपन से ही शिवजी को वर के रूप में पाना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने कठोर तप किया था तब एक दिन नारद जी पर्वतराज  हिमालय  के  महल  में  पहुंचे और हिमालय से कहा कि पार्वती के तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु उनसे विवाह करना चाहते हैं।


यह सुन हिमालय बहुत प्रसन्न हुए। दूसरी ओर नारद मुनि विष्णुजी के पास पहुंच गए और कहा कि हिमालय ने अपनी पुत्री पार्वती का विवाह आपसे कराने का निश्चय किया है। इस पर विष्णुजी ने भी सहमति दे दी।


नारद इसके बाद माता पार्वती के पास पहुंच गए और बताया कि पिता हिमालय ने उनका विवाह विष्णु से तय कर दिया है। यह सुन पार्वती बहुत निराश हुईं और पिता से नजरें बचाकर सखियों के साथ एक एकांत स्थान पर चली गईं और सुनसान जंगल में पहुंचकर माता पार्वती ने एक बार फिर तप शुरू किया। उन्होंने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और उपवास करते हुए पूजन शुरू किया।


भगवान शिव पार्वती के तप से प्रसन्न हुए और मनोकामना पूरी करने का वचन दे दिया। इस बीच माता पार्वती के पिता पर्वतराज हिमालय भी वहां पहुंच गए। जब उन्हें इस सत्य के बारे में पता चला तो वह माता पार्वती की शादी भगवान शिव से कराने के लिए राजी हो गए।


शिव जी ने माता पार्वती को विस्तार से इस व्रत का महत्व समझाया, शिव कहते हैं, ‘हे पार्वती! तुमने जो कठोर व्रत किया था उसी के फलस्वरूप हमारा विवाह हो सका। इस व्रत को निष्ठा से करने वाली स्त्री को मैं मनोवांछित फल देता हूं।’



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