दिल्ली सल्तनत के राजवंश
ग़ुलाम वंश
कुतुबी राजवंश
◆ कुतुबुद्दीन ऐबक (संस्थापक 1206 से 1210 ई.)
◆ आरामशाह (1210 से 1211 ई.)
◆ शम्सी राजवंश;
◆ इल्तुतमिश (संस्थापक (1211 से 1236 ई.)
◆ रुक्नुद्दीन फ़िरोज (1236 ई.)
◆ रज़िया सुल्तान (1236 से 1240 ई.)
◆ मुईजुद्दीन बहरामशाह (1240 से 1242 ई.)
◆ अलाउद्दीन मसूदशाह (1242 से 1246 ई.)
◆ नासिरुद्दीन महमूद (1246 से 1266 ई.)
ममलूक या गुलाम (1206 - 1290)
कुतुब-उद-दीन ऐबक एक गुलाम था, जिसने दिल्ली सल्तनत की स्थापना की। वह मूल रूप से तुर्क था। उसके गुलाम होने के कारण ही इस वंश का नाम गुलाम वंश पड़ा।
ऐबक चार साल तक दिल्ली का सुल्तान बना रहा। उसकी मृत्यु के बाद 1210 इस्वी में आरामशाह ने सत्ता संभाली परन्तु उसकी हत्या इल्तुतमिश ने 1211 इस्वी में कर दी। इल्तुतमिश की सत्ता अस्थायी थी और बहुत से मुस्लिम अमीरों ने उसकी सत्ता को चुनौती दी। कुछ कुतुबी अमीरों ने उसका साथ भी दिया। उसने बहुत से अपने विरोधियों का क्रूरता से दमन करके अपनी सत्ता को मजबूत किया।
इल्तुतमिश ने मुस्लिम शासकों से युद्ध करके मुल्तान और बंगाल पर नियंत्रण स्थापित किया, जबकि रणथम्भौर और शिवालिक की पहाड़ियों को हिन्दू शासकों से प्राप्त किया। इल्तुतमिश ने 1236 इस्वी तक शासन किया। इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद दिल्ली सल्तनत के बहुत से कमजोर शासक रहे जिसमे उसकी पुत्री रजिया सुल्ताना भी शामिल है। यह क्रम गयासुद्दीन बलबन, जिसने 1266 से 1287 इस्वी तक शासन किया था, के सत्ता सँभालने तक जारी रहा। बलबन के बाद कैकूबाद ने सत्ता संभाली। उसने जलाल-उद-दीन फिरोज शाह खिलजी को अपना सेनापति बनाया। खिलजी ने कैकुबाद की हत्या कर सत्ता संभाली, जिससे गुलाम वंश का अंत हो गया।
गुलाम वंश के शासक एवं उनका शासनकाल
गुलाम वंश के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य
गुलाम वंश का संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक था, वह मोहम्मद गौरी का गुलाम था।
कुतुबुद्दीन ऐबक को उसकी उदारता के लिए लाख बख्श (लाखो दान करने वाला) कहा जाता था ।
कुतुबमीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने सूफी संत ‘शेख ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी‘ की याद में प्रारंभ कराया था जिसे बाद में इल्तुतमिस ने पूर्ण कराया।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने अजमेर में अढाई दिन का झोपडा नामक मस्जिद का निर्माण कराया था।
कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु चोगम खेलते समय घोड़े से गिरने से हुई थी।
इल्तुतमिस ने अपनी राजधानी लाहौर से दिल्ली स्थानांतरित किया।
इल्तुतमिस ने कुतुबमीनार की ऊपर की दो मंजिल का निर्माण पूर्ण कराया था।
इल्तुतमिस ने 40 गुलाम सरदारों का संगठन बनाया था जिसे ‘तुर्कान-ए-चिहलगानी’ कहा गया।
रजिया दिल्ली की के सिंहासन पर बैठने वाली पहली महिला सुल्तान थी।
रजिया सुल्तान का विवाह अल्तुनिया से हुआ था।
नसीरुद्दीन मुहम्मद ऐसा सुल्तान था जो अपनी रोजी रोटी कुरान की नकल करके बेचकर एवं टोपी सीकर चलाता है।
ग्यासुद्दीन बलवन दिल्ली सल्तनत का क्रूर शासक था उससे अपने विरोधियों के साथ ‘लोह एवं रक्त’ की नीति अपनाई।
बलवन ने सिजदा प्रथा (झुककर नमस्कार) एवं पाबौस प्रथा (सुल्तान के पांव छूना) प्रारंभ किया। तथा फारसी परम्परा का ‘नवरोज उत्सव’ आरंभ
खिलजी वंश के शासक एवं उनका शासनकाल
◆ खिलजी वंश (1290 -1320)
◆ जलालुद्दीन फिरोज खिलजी - 1290-1296
◆ अलाउद्दीन खिलजी - 1296- 1316
◆ कुतुबुद्दीन मुबारक शाह - 1316- 1320
◆ नासिरुद्दीन खुसरो शाह - 1320
दिल्ली सल्तनत का अमर इतिहास में आगे चलते हुए खिलजी वंश का इतिहास है इस वंश का पहला शासक जलालुद्दीन खिलजी था। उसने ही गुलाम वंश के अंतिम शासक कैकुबाद को मार कर गद्दी हासिल की थी। उसने कैकुबाद को तुर्क, अफगान और फारस के अमीरों के इशारे पर हत्या की।
ख़िलजी वंश के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य
गुलाम वंश के अंतिम शासक को मारकर जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने खिलजी वंश की स्थापना की।
फिरोज खिलजी की हत्या उसके भतीजे व दमाद अलाउद्दीन खिलजी ने की।
अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी सफलता से प्रोत्साहित होकर ‘सिकंदर – ए – सानी’ या सिकंदर द्वितीय की उपाधि धारण कर लिया था।
अलाउद्दीन खिलजी द्वारा जजिया कर (गैर मुस्लिम से), जकात कर (धार्मिक कर सम्पत्ति का 40 वा हिस्सा) एवं आवास और चराईं कर भी लिया जाता था।
अलाउद्दीन ने बाजार नियंत्रण के लिए दीवान- ए-रियासत नामक अधिकारी नियुक्त किया।
अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के बाद मलिक काफूर नामक हिजडे ने 6 वर्षीय बालक शहाबुद्दीन उमर को गद्दी पर बैठाया।
मलिक काफूर ने सत्ता के लालच में शहावुद्दीन को अंधा करवा कर स्वयं शासन करने लगा।
मलिक काफूर सत्ता का सुख मात्र 35 दिन तक ही भोग सका, मुबारक शाह खिलजी ने उसकी हत्या करवा दिया।
कुतुबुद्दीन मुबारक शाह सुल्तान बनने के बाद आलस्य, विलासिता, वासना आदि दुर्गुणों का शिकार हो गया।
मुबारक शाह नग्न स्त्री पुरुष के साथ दरबार में आता था एवं कभी कभी स्वयं नग्न होकर दरबार में दौड़ता था।
खुसरो शाह हिन्दू धर्म परिवर्तित करके मुसलमान बना था तथा उसने स्वयं ‘पैगंबर का सेनापति’ की उपाधि धारण की।
गाजी मलिक तुगलक ने खुसरो को युद्ध में परास्त कर तुगलक वंश की स्थापना की।
तुगलक वंश के शासक
◆ ग्यासुद्दीन तुगलक शाह - 1320 - 1325
◆ मुहम्मद बिन तुगलक - 1325- 1351
◆ फिरोज तुगलक - 1351- 1388
◆ ग्यासुद्दीन तुगलक द्वितीय - 1388 - 1389
◆ अबू वक्र - 1389
◆ सीरुद्दीन मुहम्मद शाह - 1390 - 1394
◆ अलाउद्दीन सिकंदर शाह - 1394
◆ नसीरुद्दीन महमूदशाह - 1394 - 1414
तुगलक वंश ने दिल्ली पर 1320 से 1413 तक राज किया। तुगलक वंश का पहला शासक गाज़ी मलिक था जिसने गयासुद्दीन तुगलक के नाम से शासन किया। वह मूल रूप तुर्क-भारतीय था, जिसके पिता तुर्क थे और माँ हिन्दू थी। और उसने दिल्ली के निकट एक नए नगर तुगलकाबाद बसाया। कुछ इतिहासकारों का कहना है की उसकी हत्या अपने ही पुत्र जूना खान द्वारा मारा गया, जिसने 1325 इस्वी में दिल्ली की गद्दी प्राप्त की।
जूना खान ने ने अपना आधिपत्य मुहम्मद बिन तुगलक के से किया और 26 वर्षों तक दिल्ली पर शासन किया। जिसने दिल्ली सल्तनत का अमर इतिहास को आगे बढ़ाया।मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु 1351 में गुजरात के उन लोगों को मारने के दौरान हो गई, जिन्होंने दिल्ली सल्तनत के खिलाफ बगावत कर दी थी।
तुगलक वंश के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य
तुगलक वंश के संस्थापक ग्यासुद्दीन तुगलक ने अपने नाम के साथ गाजी ( काफिरों का धातक ) शब्द का प्रयोग किया था।
ग्यासुद्दीन तुगलक ने सिंचाई के लिए कुंओं व नहरों का निर्माण करवाया। संभवतः यह पहला सुल्तान था जिसने नहरों का निर्माण कराया।
ग्यासुद्दीन तुगलक की मृत्यु के बाद उसका पुत्र जौना खां मुहम्मद बिन तुगलक गद्दी पर बैठा।
मुहम्मद बिन तुगलक दिल्ली के सभी सुल्तानो मे सबसे ज्यादा शिक्षित तथा विद्वान था।
मुहम्मद बिन तुगलक ने शासन चलाने के विभिन्न विवादास्पद नीतियों बनाईं जो असफल रही।
मुहम्मद बिन तुगलक की प्रमुख असफल नीतियां –
1. दोआब क्षेत्र में कर की वृद्धि,
2.राजधानी परिवर्तन दिल्ली से देवगिरी,
3.सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन,
4. खुरासान एवं कराचिल का अभियान।
मुहम्मद बिन तुगलक के काल में ही हरिहर एवं बुक्का नामक दो भाइयों ने विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की थी।
अफ्रिकी यात्री इब्नबतूता मुहम्मद बिन तुगलक के काल में भारत आया था।
मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु पर इतिहासकार बदायूनी ने लिखा – ‘राजा को अपनी प्रजा से और प्रजा को अपने राजा से मुक्ति मिल गई’।
फिरोजशाह तुगलक ने अपने शासन काल में 24 कष्टदायक करों को समाप्त कर केवल चार कर खराच (लगान) , खुम्स (युद्ध में लूट का माल) , जजिया , जकात वसूल किए।
फिरोजशाह तुगलक ब्राह्मणों पर भी जजिया कर लगाने वाला पहला सुल्तान था ।
फिरोजशाह तुगलक ने खिज्राबाद (टोपरा) एवं मेरठ से अशोक स्तंभ को लाकर दिल्ली में स्थापित कराया।
फिरोजशाह तुगलक ने जाजनगर (उड़ीसा) के शासक भानुदेव को हराया तथा जगन्नाथ मंदिर को ध्वस्त किया।
फिरोजशाह ने नगरकोट स्थित ज्वालामुखी मंदिर को ध्वस्त कर 1300 ग्रंथों लूटकर कुछ का फारसी अनुवाद करवाया जिसे दलायते – फिरोजशाही नाम दिया।
फिरोजशाह तुगलक ने अपनी आत्मकथा ‘फतूहात -ए – फिरोजशाही’ लिखी थी।
तुगलक वंश का अंतिम शासक नसीरुद्दीन महमूद शाह था।
नसीरुद्दीन महमूद शाह शासन काल में तैमूरलंग ने दिल्ली में आक्रमण किया था।
सैय्यद वंश के शासक
सैयद वंश एक तुर्क राजवंश था जिसने दिल्ली सल्तनत पर 1415 से 1451 तक शासन किया। टमुरुद पर आक्रमण और लूटने दिल्ली सल्तनत को बदमाशों में छोड़ दिया था, और सैयद वंश के शासन के बारे में बहुत कम जानकारी है। एन्निमरी शिममेल, राजवंश के पहले शासक को खज़्र खान के रूप में नोट करता है, जिन्होंने टिमूर का प्रतिनिधित्व करने का दावा करके शक्ति ग्रहण की थी दिल्ली के पास के लोगों ने भी उनके अधिकार पर सवाल उठाए थे उनका उत्तराधिकारी मुबारक खान था, जिन्होंने खुद को मुबारक शाह के रूप में नाम दिया और पंजाब के खो राज्यों को फिर से हासिल करने की कोशिश की, असफल।
सईद वंश की शक्ति के साथ, भारतीय उपमहाद्वीप पर इस्लाम के इतिहास में गहरा परिवर्तन हुआ, शमीमल के अनुसार। इस्लाम का पहले प्रमुख सुन्नी संप्रदाय पतला था, शिया गुलाब जैसे वैकल्पिक मुस्लिम संप्रदायों, और इस्लामी संस्कृति के नए प्रतिस्पर्धा केन्द्रों ने दिल्ली से परे जड़ें निकालीं। सैयद वंश को 1451 में लोदी राजवंश द्वारा विस्थापित किया गया था।
सैय्यद वंश के महत्वपूर्ण तथ्य
सैय्यद वंश का संस्थापक खिज्र खां ने सुल्तान की उपाधि ग्रहण नहीं की वह 'रैयत- ए - आला' के नाम से संतुष्ट रहा।
खिज्र खां की मृत्यु के बाद उसका पुत्र मुबारक खां गद्दी पर बैठा तथा शाह उपाधि धारण की।
मुबारक शाह के दरबार में प्रसिद्ध लेखक सरहिन्दी था जिसने 'तारीख - ए - मुबारक शाही' लिखी थी।
यमुना के तट पर मुबारक शाह ने मुबारकबाद नामक एक नगर बसाया था।
लोदी वंश
लोदी वंश अफगान लोदी जनजाति का था। बहलुल खान लोदी ने लोदी वंश को शुरू किया और दिल्ली सल्तनत पर शासन करने वाला पहला पश्तून था। बहुलल लोदी ने अपना शासन शुरू किया कि दिल्ली सल्तनत के प्रभाव का विस्तार करने के लिए मुस्लिम जौनपुर सल्तनत पर हमला करके, और एक संधि के द्वारा आंशिक रूप से सफल हुए। इसके बाद, दिल्ली से वाराणसी (फिर बंगाल प्रांत की सीमा पर) का क्षेत्र वापस दिल्ली सल्तनत के प्रभाव में था।
लोदी वंश के शासक
◆ बहलोल लोदी 1451 - 1489
◆ सिकंदर लोदी 1489 - 1517
◆ इब्राहिम लोदी 1517 - 1526
लोदी वंश के महत्वपूर्ण तथ्य मध्यकालीन भारत के महत्वपूर्ण प्रश्न उतरबहलोल लोदी दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाला पहला अफगान शासक था। उसने 'बहलोल शाह गाजी' नामक उपाधि धारण की।
बहलोल लोदी का पुत्र निजाम खां 'सुल्तान सिकंदर शाह लोदी' उपाधि के साथ गद्दी पर बैठा।
सिकंदर लोदी ने 1504 ई. में आगरा शहर की स्थापना की तथा उसे अपनी राजधानी बनाया।
सिकंदर शाह लोदी द्वारा माप का एक पैमाना ' गज-ए-सिकंदरी' प्रचलित कराया।
सिकंदर लोदी ने ज्वालामुखी मंदिर की मूर्तियों तुडवाकर कसाइयों को मांस तौलने के लिए दे दिया था।
सिकंदर लोदी के आदेश पर संस्कृत ग्रंथ ' आयुर्वेद ' का फारसी अनुवाद ' फरहंगे - सिकंदरी ' नाम से किया गया।
गले के कैंसर से सिकंदर लोदी की मृत्यु होने के बाद उसका पुत्र इब्राहिम लोदी गद्दी पर बैठा।
इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खां तथा पंजाब के शासक दौलत खां लोदी ने काबुल के शासक बाबर को दिल्ली पर आक्रमण का निमंत्रण दिया था
बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच 21 अप्रैल 1526 में पानीपथ का प्रथम युद्ध हुआ जिसमें इब्राहिम लोदी बुरी तरह हार गया।
इब्राहिम लोदी उसी युद्ध में मारा गया और दिल्ली के सल्तनत काल का अंत हो गया।
बाबर ने इब्राहिम लोदी को मारकर दिल्ली में मुगल साम्राज्य की स्थापना की।
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