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मध्यकालीन भारत का इतिहास - भक्ति आंदोलन (Bhakti Movement)

मध्यकालीन भारत का इतिहास -  भक्ति आंदोलन (Bhakti Movement)


भक्ति आंदोलन

सल्तनत काल से ही हिन्दू मुस्लिम संघर्ष का काल था । दिल्ली सुल्तानों ने हिन्दू धर्म के प्रति अत्याचार करना आरंभ कर दिये थे । उन्होंने अनेक मंदिरेां और मुर्तियों को तोड़ने लगे थे । जिससे हिन्दुओ ने अपने धर्म की रक्षा के लिए एकेश्वरवाद को महत्व दिया और धर्म सुधारको ने एक आन्दोलन चालाया यही आन्दोलन भक्ति आन्दोलन के नाम से विख्यात हुआ। मध्यकाल में सुल्तानों के अत्याचार एवं दमन की नीति से भारतीय समाज आंतकित और निराश हो चुका था । ऐसी स्थिति में कुछ विचारकों एवं संतों ने हिन्दू धर्म की कुरितियों को दूर करने के लिए एक अभियान प्रारंभ किया । इसी अभियान को भक्ति आन्दोलन के नाम से जाना जाता था।


भक्ति आन्दोलन के प्रवर्तक,सम्प्रदाय ,काल


शंकराचार्य , स्मृति सम्प्रदाय, अद्वैतवाद, 788-820 ई.


रामानुजाचार्य, श्री सम्प्रदाय ,विशिष्टाद्वैतावाद 1017-1133 ई.


निम्बार्काचार्य , सनक सम्प्रदाय द्वैताद्वैतवाद 1165 ई. (जन्म)


मध्वाचार्य, ब्रह्मा सम्प्रदाय, द्वैतवाद 1199-1278 ई.


कबीरदास, कबीर पंथ,विशुद्ध द्वैतवाद 1140-1510 ई.


नानक, सिक्ख सम्प्रदाय , 1469-1538 ई.


बल्लभाचार्य , रुद्र सम्प्रदाय, शुद्धाद्वैतावाद 1479-1531 ई.


चैतन्य महाप्रभु , मध्य गौडीय सम्प्रदाय ,अचिंत्य भेदाभेदवाद , 1486-1533 ई.


दादू दयाल, दादूपन्थ,निपख सम्प्रदाय , 1544-1603 ई.


तुकाराम, वारकरी सम्प्रदाय, 1598-1650 ई.


भक्ति आन्दोलन का उद्देश्य


भक्ति आन्दोलन के निम्नलिखित दो उद्देश्य है।


हिन्दू धर्म एवं समाज में सुधार करना - भक्ति मार्ग अपनाने से समाज में धर्म के प्रति एकता की भावना जागृत हो गयी ।


इस्लाम एवं हिन्दू धर्म में समन्वय करना - भक्ति आन्दोलन के द्वारा इस्लाम व हिन्दू धर्म के प्रति समन्वय की भावना का विकास हुआ ।


भक्ति आन्दोलन को अपनाने के कारण


मुस्लिम आक्रमणकारी के अत्याचार - भारत में मुस्लिम अत्याचारियों ने बबर्र ता से अत्याचार किया हिन्दुओं का कत्लेआम, मूर्तियों मंदिरों का विध्वंस आदि । इससे निजात पाने के लिए भक्ति आंदोलन को अपनाया गया ।


धर्म एवं जाति का भय - मुस्लिम आक्रमणकारियों से हिन्दू सम्पद्राय के लागे भयभीत थे उन्हें यह डर था कि उनके धर्म एवं जाति का विनाश हो जायेगा । इसलिए इनकी रक्षा हेतु भक्ति आन्दोलन का आश्रय लिया गया ।


इस्लाम का प्रभाव - हिन्दुओं ने अनुभव किया कि इस्लाम धर्म में सादगी व सरलाता है । उनमें जातीय भेदभाव नहीं है इसलिए हिन्दुओं ने इन्हें दूर करने के लिए जो मार्ग अपनाया। उसने भक्ति आंदोलन का रूप धारण कर लिया ।


राजनैतिक सगंठन - मुस्लिम सुल्तानों ने भारतीयों पर भयकंर अत्याचार किया । भारतीय राजाओं को परास्त कर अपनी सत्ता की स्थापना की । इस संघर्ष से मुक्ति पाने के लिए भारतीयों ने अपने राज्य की पुर्नस्थापना की । जिससे हिन्दू धर्म संगठित हो गया और भक्ति मार्ग को बल मिला ।


रूढ़िवादिता - मध्यकाल के आते आते हिन्दू धर्म रूढिव़ादी हो गया था । यज्ञो, अनुष्ठानों की संकीर्णता से लोग ऊब गये थे । वे सरल धर्म चाहते थे । जिससे भक्ति मार्ग का उदय हुआ।


पारस्परिक मतभेद - हिन्दू धर्म में भेदभाव बहुत था । निम्न वर्गो की दशा बहुत दयनीय थी । भेदभाव को समाप्त करने के लिए भक्ति मार्ग को अपनाया गया ।


हिन्दुओं की निराशा - मुसलमानों के अत्याचाार से हिन्दुओं की निराशा बढ़ चुकी थी। वे बहुत हताश हो गये थे ईश्वर के अतिरिक्त उन्हें कोर्इ नहीं दिखार्इ दे रहा था जिसके कारण वे भक्ति मार्ग को अपनाया ।


भक्ति आन्दोलन की विशेषतायें-


भक्ति आन्दोलन की निम्नलिखित विशेषताये है । जो निम्नानुसार है-


एक ईश्वरमें आस्था- ईश्वर एक है वह सर्व शक्तिमान है ।


बाह्य आडम्बरों का विरोध- भक्ति आन्दोलन के सतां ने कर्मकाण्ड का खण्डन किया । सच्ची भक्ति से मोक्ष एवं ईश्वर की प्राप्ति होती है ।


सन्यास का विरोध- भक्ति आन्दोलन के अनुसार यदि सच्ची भक्ति है ईश्वर में श्रद्धा है तो गृहस्थ में ही मोक्ष मिल सकता है ।


वर्ण व्यवस्था का विरोध- भक्ति आन्दालेन के आन्दोलन के प्रवतकों ने वर्ण व्यवस्था का विरोध किया है । ईश्वर के अनुसार सभी एक है ।


मानव सेवा पर बल- भक्ति आन्दाले न के समर्थकों ने यह माना कि मानव सेवा सर्वोपरि है । इससे मोक्ष मिल सकता है ।


हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रयास- भक्ति आन्दोलन के द्वारा सतांे ने लोगों को यह समझाया कि राम, रहीम में कोर्इ अंतर नहीं ।


स्थानीय भाषाओं में उपदेश- संतों ने अपना उपदेश स्थानीय भाषाओं में दिया । भक्तों ने इसे सरलता से ग्रहण किया ।


समन्वयवादी प्र्रवृत्ति- संतो, चिन्तकों, विचारकों ने र्इष्र्या की भावना को समाप्त करके लोगों में सामजंस्य, समन्वय की भावनाओं को प्रोत्साहन दिया ।


गुरू के महत्व मेंं वृद्धि- भक्ति आन्दोलन के संतो ने गुरू एवं शिक्षक के महत्व पर बल दिया । गुरू ही ईश्वर के रहस्य को सुलझाने एवं मोक्ष प्राप्ति में सहायक होता है । समर्पण की भावना- समर्पण की भावना से सत्य का साक्षात्कार एवं मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है ।


समानता की भावना- ईश्वर के समक्ष सभी लागे समान है । ईश्वर सत्य है । सभी जगह विद्यमान है । उनमें भेदभाव नहीं है । यही भक्ति मार्ग का सही रास्ता है ।


भक्ति आन्दोलन के प्रमुख संत


आचार्य रामानुज- इनका जन्म आधुनिक आन्ध्रपद्रेश के त्रिपुती नगर में 1066 र्इ. में हुआ था । वे विष्णु के भक्त थे । उन्होंने सभी के लिए मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खोला ।


रामानंद- इनका जन्म प्रयाग में एक ब्राम्हण परिवार में हुआ था । वे एक महान धर्म सुधारक थे । वे अल्पायु में ही सन्यास ग्रहण कर लिये थे, ये राम के भक्त थे इन्होंने वैष्णव धर्म का द्वार सभी के लिए खोल दिया था । वे प्रेम व भक्ति पर जोर दिये ।


कबीर- कबीर एक महान सतं थे । इनका जन्म 1398 में काशी में हुआ था । इन्होंने भी प्रेम व भक्ति पर बल दिया । इन्होंने अंधविश्वास, कर्मकांड, दकियानूसी विचार, तीर्थ आदि पर खूब व्यंग्य किया है । उन्होंने पहली बार धर्म को अकर्मण्यता की भूमि से कटाकर कर्मयोगी की भूमि में लाकर खड़ा कर दिया । कबीर हिन्दू, मुसलमान, सम्प्रदायों की एकता का महान अग्रदूत था ।


चैतन्य- चैतन्य महाप्रभु सन्यासी होने के बाद कृष्ण भक्ति में लीन हो गये । उनका विश्वास था कि प्रेम, भक्ति, संगीत, नृत्य आदि से ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है ।


नामदेव- वे भी बाह्य आडम्बर जाति पाति का विरोध किया । ईश्वर की भक्ति को सच्चा मार्ग बतलाया ।


गुरूुनानक- गुरूनानक ने मूिर्तपूजा का विरोध किया । इनके गुरू अर्जनु देव थे एकेश्वरवाद व निर्गुण ब्रम्हा के उपासक थे । वे हिन्दू मुसलमानों में एकता चाहते थे ।


वल्लाभाचार्य- ये तेलगू बा्रम्हण परिवार के थे ये महान विद्वान थे । वे कृष्ण भक्ति का प्रचार किये । कृष्ण भक्ति के महत्व को उच्चकोटि का कहा । उन्होंने कृष्ण के प्रति सच्ची श्रद्धा व्यक्त की है ।


ज्ञानेश्वर- ये ब्राम्हणों का विरोध करते थे । इन्होनें निम्न जाति के लोगों के लिए धार्मिक ग्रंथों पर प्रतिबंध लगाया था ।


माधवाचार्य- 13वी सदी के महान सुधारक एवं संत थे । ये विष्णु के भक्त थे । इनका मानना था कि ईश्वर भक्ति से इंसान जन्म मरण के चक्र से मोक्ष प्राप्त कर लेता है । निम्बार्क- ये कृष्ण राधा पर आधारित भक्ति की व्याख्या की है । ये धर्म सुधारक थे । ये पूर्ण आत्मसमर्पण पर जोर देते थे ।


भक्ति आन्दोलन का प्रभाव


धामिर्क प्रभाव- धार्मिक कट्टरता समाप्त हो गई सहिष्णतु की भावना जागृत हो गयी।


अंध विश्वासों में कमी अंधविश्वास एवं बाह्य आडम्बर, पाखण्ड आदि दूर हो गये ।


ईर्ष्या द्वेष में कमी- भक्ति मार्ग से लोगो के मन में जो ईर्ष्या द्वेष की भावना समाप्त होकर एकता जागृत हो गई ।


समन्वय की भावना में वृद्धि हुई- हिन्दु, मस्लिम में कटुता कम हो गई ।


धर्म निरपेक्ष भावना में वृद्धि- सभी धर्मो में एकता जागृत हुई । यही कारण था कि अकबर जैसे सम्राट आये ।


इस्लाम प्रसार की समाप्ति- लोगों में समानता की भावना उत्पन्न हो गई । निम्नवर्ग इस्लाम के प्रभाव से मुक्त हो गया ।


सिक्ख धर्म की स्थापना- भक्ति मार्ग के कारण गुरूनानक ने सिक्ख धर्म की स्थापना की ।


बौद्ध धर्म का पतन- हिन्दू धर्म में जागृति आयी बौद्ध धर्म का पतन हो गया ।


समाज सेवा में वृद्धि- समाज सेवा से लोगों के मन में मानव सेवा की भावना जागृत हुई।


कला का विकास- भक्ति आन्दोलन से अनेक भवनो का निर्माण होने से कला का विकास आरंभ हो गया ।



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