बौद्ध धर्म का इतिहास
History of Buddhism in hindi
बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और महान दर्शन है। 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में बौद्ध धर्म की स्थापना हुई है। बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध है।
गौतम बुद्ध का परिचय
भगवान बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी, नेपाल और महापरिनिर्वाण 483 ईसा पूर्व कुशीनगर, भारत में हुआ था। उनके महापरिनिर्वाण के अगले पाँच शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैला और अगले दो हजार वर्षों में मध्य, पूर्व और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फैल गया।
नाम – सिद्धार्थ गौतम बुद्ध
जन्म – 563 ईसा पूर्व लुम्बिनी, नेपाल
मृत्यु – 483 ईसा पूर्व कुशीनगर, भारत
शादी – राजकुमारी यशोधरा
बच्चें – एक पुत्र, राहुल
पिता का नाम – शुद्धोदन (एक कुशल राजा)
माता का नाम – मायादेवी या महामाया (महारानी)
बौद्ध धर्म की स्थापना
चौथी शताब्दी के दौरान गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व के समय कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी (नेपाल) में हुआ था।
गौतम गोत्र में जन्म लेने के कारण वे गौतम बुद्ध कहलाये इनके पिता शुद्धोधन एक राजा थे। इनकी माता माया देवी कोली वंश की महिला थी लेकिन बालक के जन्म देने के बाद 7 दिन के अंदर माया देवी की मृत्यु हो गयी थी।
जिसके बाद इनका लालन-पालन उनकी मौसी और राजा की दूसरी पत्नी रानी गौतमी ने की और इस बालक का नाम सिद्धार्थ रख दिया गया। सिद्धार्थ बचपन से बहुत की दयालु और करुणा वाले व्यक्ति थे।
सिद्धार्थ की शादी मात्र 16 साल की आयु में राजकुमारी यशोधरा के साथ हुई थी।
और इस शादी से एक बालक का जन्म हुआ था, जिसका नाम राहुल रखा था लेकिन उनका मन घर और मोह माया की दुनिया में नहीं लगा और वे घर परिवार को त्याग कर जंगल में चले गये थे।
इस घटना को महाभिनिष्क्रमण कहा गया।
16 वर्ष की आयु में गणराज्य की राजकुमारी यशोधरा से शादी करवा दी गई। विवाह के कुछ वर्ष बाद एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम राहुल रखा गया। समस्त राज्य में पुत्र जन्म की खुशियां मनाई जा रही थी लेकिन सिद्धार्थ ने कहा, आज मेरे बन्धन की श्रृंखला में एक कडी और जुड गई।
यद्यपि उन्हे समस्त सुख प्राप्त थे, किन्तु शान्ति प्राप्त नहीं थी। चार दृश्यों (वृद्ध, रोगी, मृत व्यक्ति एवं सन्यासी) ने उनके जीवन को वैराग्य के मार्ग की तरफ मोड़ दिया। अतः एक रात के समय वह अपने पुत्र व अपनी पत्नी को सोता हुआ छोड़कर गृह त्याग कर ज्ञान की खोज में निकल पड़े।
गया के निकट एक वट वृक्ष (पीपल) के नीचे वैशाख पूर्णिमा को निरंजना नदी या फाल्गुन नदी के किनारे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। और उसी दिन वे तथागत हो गये। जिस वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ वह आज भी 'बोधि वृक्ष' के नाम से विख्यात है।
ज्ञान प्राप्त घटना को धर्मचक्रपरिवर्तन कहा गया।ज्ञान प्राप्ति के समय उनकी अवस्था 35 वर्ष थी। ज्ञान प्राप्ति की घटना को निर्वाण कहा जाता है।
ज्ञान प्राप्ति के बाद 'तपस्स' तथा 'मल्लक' नामक दो शूद्र उनके पास आये। महात्मा बुद्ध ने उन्हें ज्ञान दिया और बौद्ध धर्म का प्रथम अनुयायी बनाया।
गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया जिसे धर्मचक्रप्रवर्तन कहा गया। बौद्ध ने सर्वाधिक उपदेश कौशल देश की राजधानी श्रावस्ती मैं दिए थे।बुद्ध की 80-वर्ष की आयु में 483 ई. पूर्व कुशीनगर में मृत्यु हुई थी। बौद्ध धर्म के अनुयायी इसे ‘महापरिनिर्वाण’ कहते हैं।
बुद्ध की शिक्षाएँ
गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद, बौद्ध धर्म के अलग-अलग संप्रदाय उपस्थित हो गये हैं, परंतु इन सब के बहुत से सिद्धांत मिलते हैं। तथागत बुद्ध ने अपने अनुयायियों को चार आर्य सत्य, अष्टांगिक मार्ग, दस पारमिता, पंचशील आदि शिक्षाओं को प्रदान किया हैं।
चार आर्य सत्य
दुःख :- इस दुनिया में दुख है। जन्म में, बूढ़े होने में, बीमारी में, मौत में, प्रियतम से दूर होने में, नापसंद चीजों के साथ में, चाहत को न पाने में, सब में दुख है।
दुःख कारण :- तृष्णा, या चाहत, दुःख का कारण है और फिर से सशरीर करके संसार को जारी रखती है।
दुःख निरोध:- बौद्ध धर्म के अनुसार, चौथे आर्य सत्य का आर्य अष्टांग मार्ग है दुःख निरोध पाने का रास्ता।
अष्टांगिक मार्ग :- गौतम बुद्ध कहते थे कि चार आर्य सत्य की सत्यता का निश्चय करने के लिए इस मार्ग का अनुसरण करने के लिए कहा है।
अष्टांगिक मार्ग
सम्यक दृष्टि :- चार आर्य सत्य में विश्वास करना।
सम्यक संकल्प :- मानसिक और नैतिक विकास की प्रतिज्ञा करना।
सम्यक वाक : - हानिकारक बातें और झूट न बोलना।
सम्यक कर्म :- हानिकारक कर्मों को न करना।
सम्यक जीविका :- कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हानिकारक व्यापार न करना।
सम्यक प्रयास :- अपने आप सुधरने की कोशिश करना।
सम्यक स्मृति :- स्पष्ट ज्ञान से देखने की मानसिक योग्यता पाने की कोशिश करना।
सम्यक समाधि : - निर्वाण पाना और स्वयं का गायब होना।
पंचशील
अहिंसा
अस्तेय
अपरिग्रह
सत्य
सभी नशे से विरत।
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