Pauranik katha : नंदी के दर्शन और महत्व
Pauranik katha : नंदी के दर्शन और महत्व |
कि अगर भक्ति के साथ मनुष्य में क्रोध, अहम व दुर्गुणों को पराजित करने का सामर्थ्य न हो तो भक्ति का लक्ष्य प्राप्त नहीं होता।
नंदी के दर्शन करने के बाद उनके सींगों को स्पर्श कर माथे से लगाने का विधान है। माना जाता है इससे मनुष्य को सद्बुद्धि आती है, विवेक जाग्रत होता है।
नंदी के सींग दो और बातों का प्रतीक हैं। वे जीवन में ज्ञान और विवेक को अपनाने का संंदेश देते हैं। नंदी के गले में एक सुनहरी घंटी होती है।
जब इसकी आवाज आती है तो यह मन को मधुर लगती है। घंटी की मधुर धुन का मतलब है कि नंदी की तरह ही अगर मनुष्य भी अपने भगवान की धुन में रमा रहे तो जीवन-यात्रा बहुत आसान हो जाती है।
नंदी के सींग दो और बातों का प्रतीक हैं। वे जीवन में ज्ञान और विवेक को अपनाने का संंदेश देते हैं। नंदी के गले में एक सुनहरी घंटी होती है।
जब इसकी आवाज आती है तो यह मन को मधुर लगती है। घंटी की मधुर धुन का मतलब है कि नंदी की तरह ही अगर मनुष्य भी अपने भगवान की धुन में रमा रहे तो जीवन-यात्रा बहुत आसान हो जाती है।
नंदी पवित्रता, विवेक, बुद्धि और ज्ञान के प्रतीक हैं।उनका हर क्षण शिव को ही समर्पित है और मनुष्य को यही शिक्षा देते हैं कि वह भी अपना हर क्षण परमात्मा को अर्पित करता चले तो उसका ध्यान भगवान रखेंगे।
पौराणिक कथा
शिलाद मुनि के ब्रह्मचारी हो जाने के कारण वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने अपनी चिंता उनसे व्यक्त की।
मुनि योग और तप आदि में व्यस्त रहने के कारण गृहस्थाश्रम नहीं अपनाना चाहते थे।
शिलाद मुनि ने संतान की कामना से इंद्र देव को तप से प्रसन्न कर जन्म और मृत्यु से हीन पुत्र का वरदान माँगा। परन्तु इंद्र ने यह वरदान देने में असर्मथता प्रकट की और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा।
मुनि योग और तप आदि में व्यस्त रहने के कारण गृहस्थाश्रम नहीं अपनाना चाहते थे।
शिलाद मुनि ने संतान की कामना से इंद्र देव को तप से प्रसन्न कर जन्म और मृत्यु से हीन पुत्र का वरदान माँगा। परन्तु इंद्र ने यह वरदान देने में असर्मथता प्रकट की और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा।
भगवान शंकर शिलाद मुनि के कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर स्वयं शिलाद के पुत्र रूप में प्रकट होने का वरदान दिया और नंदी के रूप में प्रकट हुए।
शंकर के वरदान से नंदी मृत्यु से भय मुक्त, अजर-अमर और अदु:खी हो गया।
भगवान शंकर ने उमा की सम्मति से संपूर्ण गणों, गणेशों व वेदों के समक्ष गणों के अधिपति के रूप में नंदी का अभिषेक करवाया। इस तरह नंदी नंदीश्वर हो गए।
बाद में मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ नंदी का विवाह हुआ। भगवान शंकर ने नंदी को वरदान दिया कि जहाँ पर नंदी का निवास होगा वहाँ उनका भी निवास होगा।
तभी से हर शिव मंदिर में शिवजी के सामने नंदी की स्थापना की जाती है।
शंकर के वरदान से नंदी मृत्यु से भय मुक्त, अजर-अमर और अदु:खी हो गया।
भगवान शंकर ने उमा की सम्मति से संपूर्ण गणों, गणेशों व वेदों के समक्ष गणों के अधिपति के रूप में नंदी का अभिषेक करवाया। इस तरह नंदी नंदीश्वर हो गए।
बाद में मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ नंदी का विवाह हुआ। भगवान शंकर ने नंदी को वरदान दिया कि जहाँ पर नंदी का निवास होगा वहाँ उनका भी निवास होगा।
तभी से हर शिव मंदिर में शिवजी के सामने नंदी की स्थापना की जाती है।
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